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मेरा सर्वेश्वर मेरा श्याम

खाटू श्याम की भक्ति से जीव को मोक्ष का श्रृंगार प्राप्त होता है

खाटू के श्याम, तुम हर प्राणी का दर्द समझते हो।

खाटू श्याम, भगवान कृष्ण के अवतार का प्रतीक, भक्तों के दुःखों को दूर करके खुशियों की राह दिखाते हैं। उनकी कृपा और आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। खाटू श्याम भगवान के कृपाशील स्वरूप के कारण, वे हमारे सभी दुःखों को समझते हैं और हमें आनंदमय जीवन की दिशा में प्रेरित करते हैं।

खाटू की कहानी

कोन था बर्बरीक

कलियुग का राजा

भगवान कृष्ण का वरदान

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भगतो की कहानी

खाटू श्याम जी के आशीर्वाद से मेरे जीवन में आयी सकारात्मक परिवर्तन ने मेरी आत्मा को शांति और सुखद अनुभवित कराया। उनकी कृपा से मेरी समस्याओं का समाधान हुआ और मैंने नये दिशानिर्देश प्राप्त किए। खाटू श्याम जी की पूजा मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है और उनके दर्शन से मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है। उनके चरणों में मेरी भक्ति और आदर्श जीवनशैली का सारांश समाहित है। खाटू श्याम जी के अनुग्रह से मेरा जीवन आनंदमय और प्रेरणादायक हो गया है।

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इस उपदेश में भगवान कृष्ण कहते हैं कि हमारा कर्तव्य कर्म करना है, लेकिन हमें कर्मफल पर आसक्त नहीं होना चाहिए। यह बताता है कि सफलता या असफलता का स्वागत करना और सुखी जीवन बिताना हमारे अधिकार में नहीं है, बल्कि हमें केवल कर्म में लगना चाहिए।

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥" - श्रीमद् भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47

इस उपदेश में भगवान कृष्ण कहते हैं कि सुख और दुःख में समानभाव से रहने वाला व्यक्ति ही वास्तविक धीर मुनि होता है। यह शिक्षा देता है कि आत्मा को आसक्तियों से मुक्त रखकर सहज और आनंदपूर्ण जीवन जीना चाहिए।

"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥" - श्रीमद् भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 56

इस उपदेश में भगवान कृष्ण कहते हैं कि सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीत-हार को समानभाव से देखकर कर्तव्यपरायण रहना चाहिए। यह शिक्षा देता है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों में निष्ठा रखने के साथ ही फलों का आसक्त नहीं होना चाहिए।

"सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥" - श्रीमद् भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 38

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Dasharatha - दशरथ

दशरथ एक महान और प्रसिद्ध राजा थे, जो त्रेतायुग में आये। वे कोसल राजवंश के अंतर्गत राजा थे। दशरथ का जन्म अयोध्या नगर में हुआ। उनके माता-पिता का नाम ऋष्यरेखा और श्रृंगर था। दशरथ की माता ऋष्यरेखा उनके पिता की दूसरी पत्नी थीं। दशरथ की प्रथम पत्नी का नाम कौशल्या था, जो उनकी पत्नी के रूप में सदैव निर्देशक और सहायक थी।

दशरथ का रंग गहरे मिटटी के बराबर सुनहरा था, और उनके बाल मध्यम लंबाई के साथ काले थे। वे बहुत ही शक्तिशाली और ब्राह्मण गुणों से युक्त थे। दशरथ धर्मिक और सामर्थ्यपूर्ण शासक थे, जो अपने राज्य की अच्छी तरह से देखभाल करते थे। वे एक मानवीय राजा थे जिन्होंने न्याय, सच्चाई और धर्म को अपना मूल मंत्र बनाया था।

दशरथ के विद्यालयी शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा था। वे वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान रखते थे। उन्होंने सभी धर्मों को समान दृष्टि से स्वीकार किया और अपने राज्य की न्यायिक प्रणाली को न्यायपूर्ण और उच्चतम मानकों पर स्थापित किया।

दशरथ एक सामर्थ्यशाली सेनापति भी थे। वे बड़े ही साहसी और पराक्रमी योद्धा थे, जो अपने शत्रुओं को हरा देने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उन्होंने अपनी सेना के साथ कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया और वीरता से वापस आए। दशरथ की सेना का नागरिकों के द्वारा बहुत सम्मान किया जाता था और उन्हें उनके साहस और समर्पण के लिए प्रशंसा मिलती थी।

दशरथ एक आदर्श पिता भी थे। वे अपने तीन पुत्रों को बहुत प्रेम करते थे और उन्हें सबकुछ प्रदान करने के लिए तत्पर रहते थे। दशरथ के पुत्रों के नाम राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। वे सभी धर्मात्मा और धर्म के पुजारी थे। दशरथ के प्रति उनके पुत्रों का आदर बहुत गहरा था और वे उनके उच्च संस्कारों को सीखते थे।

दशरथ एक सच्चे और वचनबद्ध दोस्त भी थे। वे अपने मित्रों की सहायता करने में निपुण थे और उन्हें हमेशा समर्थन देते थे। उनकी मित्रता और संगठनशीलता के कारण वे अपने देश में बड़े ही प्रसिद्ध थे।

दशरथ एक सामरिक कला के प्रेमी भी थे। वे धनुर्विद्या और आयुध शस्त्रों में माहिर थे और युद्ध कला के उदात्त संगीत का भी ज्ञान रखते थे। उन्हें शास्त्रों की गहरी ज्ञान थी और वे अपने शिष्यों को भी शिक्षा देते थे। उनकी सामरिक कला में निपुणता के कारण वे आदर्श योद्धा माने जाते थे।

दशरथ एक सामर्थ्यशाली और दायालु राजा थे। वे अपने राज्य के लोगों के प्रति मानवीयता और सद्भावना का पालन करते थे। दशरथ अपने लोगों के लिए निरंतर विकास की योजनाएं बनाते और सुनिश्चित करते थे। वे अपने राज्य की संपत्ति को न्यायपूर्ण और सामर्थ्यपूर्ण तरीके से व्यय करते थे।

एक शांतिप्रिय और धर्माचार्य राजा के रूप में, दशरथ को अपने पुत्र राम के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित करना पड़ा। उन्होंने संपूर्ण राज्य को आमंत्रित किया और अपने राजमहल में एक विशाल सभा स्थापित की। दशरथ के स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों ने भाग लिया और राम ने सीता का चयन किया, जो बाद में उनकी पत्नी बनी।

दशरथ के बारे में कहा जाता है कि वे एक विद्वान्, धर्मात्मा, धैर्यशाली और सदैव न्यायप्रिय राजा थे। उनकी प्रशासनिक क्षमता और वीरता के कारण वे अपने समय के मशहूर और प्रमुख राजाओं में गिने जाते थे। दशरथ की मृत्यु ने राजवंश को भारी नुकसान पहुंचाया और उनके निधन के बाद उनके पुत्र राम को अयोध्या का राजा बनाया गया। दशरथ की साधुपन्थी और न्यायप्रिय व्यक्तित्व ने उन्हें देश और विदेश में विख्यात बनाया।