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श्री श्याम मंदिर, खाटूश्यामजी, और एकादशी कैलेंडर 2023-2024 के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
श्री श्याम मंदिर, खाटूश्यामजी: खाटूश्यामजी मंदिर राजस्थान, भारत में स्थित है, और यह भगवान श्याम के प्रसन्नतम मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के अवतार श्याम को समर्पित है और दर्शनियों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
एकादशी तिथियाँ: एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह की एकादशी को महत्वपूर्ण माना जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है।
कैलेंडर 2023-2024: 2023 और 2024 के कैलेंडर तिथियों और महीनों को दर्शाते हैं, जिनमें विभिन्न हिन्दी पंचांग की तिथियाँ, त्योहार और महत्वपूर्ण दिन शामिल हैं। यह कैलेंडर लोगों को हिन्दी धर्म के महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
खाटू धाम: खाटू धाम, जिसमें श्री श्याम मंदिर स्थित है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ स्थल है। यहां प्रतिवर्ष लाखों भक्त आकर्षित होते हैं और भगवान के दर्शन करने के लिए खाटूश्यामजी मंदिर जाते हैं।
खाटूश्यामजी मंदिर: खाटूश्यामजी मंदिर भगवान श्याम के प्रमुख मंदिरों में से एक है और यहां के भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ आकर्षित होते हैं।
इन शब्दों के माध्यम से आप भगवान श्याम के मंदिर, एकादशी व्रत, और 2023-2024 के कैलेंडर के महत्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
"श्री श्याम मंदिर" और "खाटूश्यामजी" एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल हैं, जहाँ विश्वास किया जाता है कि भगवान श्यामजी का आविर्भाव हुआ था। यह स्थान एकादशी के विशेष महत्व के लिए भी जाना जाता है, जो हिन्दू पंचांग में विशेष तिथियाँ हैं। "एकादशी" एक हिन्दू कैलेंडर में आने वाली तिथियों में से एक है, जिसे विशेष उपास्य माना जाता है।
"खाटूश्यामजी मंदिर" और "श्री श्याम जी" के भक्ति में लोग विशेष प्रकार के पूजा अर्चना और भजन करते हैं। "खाटू धाम" के रूप में यह स्थल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, जहाँ लाखों भक्त वार्षिक मेलों में श्रद्धाभाव से आते हैं। "एकादशी तिथियाँ" कल्याणकारी होती हैं और इन तिथियों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
"कैलेंडर 2023 और 2024" में यह तिथियाँ दर्शाई जाती हैं, जो श्री श्याम मंदिर के पूजा-अर्चना के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस धार्मिक स्थल पर भक्ति और आद्यात्मिकता की अद्वितीय भावना के साथ लोग आते हैं, जो उन्हें आत्मा की शांति और सुख-शांति का अनुभव कराती हैं।
वाली रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वह एक शक्तिशाली वानर राजा थे और किष्किंधा के राज्य का स्वामी थे। वाली का नाम उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के लिए प्रसिद्ध है। वाली का शरीर सुंदर और दिव्य था, और वह वानरों में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता था। उनकी पहचान गहरे सफेद रंग के बालों और बड़े-बड़े मुखरंद्र के साथ किया जाता था। वाली के बाल नाटकीय थे और उनकी चाल गर्व और दृढ़ता का प्रतीक थी।
वाली के पिता का नाम भाली था, जो एक पूर्ण भक्त हनुमान के रूप में भगवान शिव की कृपा पाने के बाद प्राप्त हुआ था। इसलिए, वाली को भी हनुमान के समान दिव्य गुण और शक्तियाँ मिली थीं। वाली बहुत ही धैर्यशील और विद्याशाली थे, और उन्होंने धरती के सभी विदेशों को यात्रा की थी और विभिन्न युद्ध कला और विज्ञान का अध्ययन किया था। उन्होंने एक विशाल सेना का निर्माण किया था और उनके साथ वानरों ने किष्किंधा को अपने विराट सेनापति का मुकाबला करने के लिए तैयार था।
वाली एक उत्कृष्ट योद्धा थे और उन्होंने कई युद्धों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता का वर्णन महाकाव्य रामायण में भी किया गया है। एक बार एक राक्षस नाम शुक को लड़ने के लिए उनके पास आया। वाली ने बड़े ही साहसपूर्वक और योग्यतापूर्वक उसे मार दिया। इसके बाद से उन्होंने शुक के द्वारा मारे जाने की गरिमा को प्राप्त कर ली और किष्किंधा का राजा बन गए। वाली की वीरता और पराक्रम सुनकर राक्षसों को भय और भ्रम के साथ भर देती थी।
वाली का मन्त्री और श्रद्धालु भक्त हनुमान भी थे, जो उन्हें अपने परिवार के साथ एकत्रित करने में सहायता करते थे। हनुमान वाली के सर्वोच्च मित्र थे और उनके बातचीत करने का अवसर बहुत ही कम होता था। हनुमान वाली की अनुकरणीयता और प्रेम को अच्छी तरह से समझते थे और वह उनके धर्म और कर्तव्यों का पालन करते थे।
वाली एक महान राजनेता भी थे और वह अपने प्रजा के प्रति समर्पित थे। उन्होंने किष्किंधा को विकासित किया था और उनके राज्य में सबका ख्याल रखने के लिए प्रयास किए थे। उन्होंने न्याय और धर्म का पालन किया और अपने प्रजा के साथ न्यायिक और सामरिक समस्याओं का समाधान किया। वाली का नामकरण किष्किंधा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है और उन्हें आदर्श शासक के रूप में याद किया जाता है।
वाली के बारे में रामायण में कई किस्से वर्णित हैं और उनके योगदान को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने राम के प्रणाम का स्वीकार किया था और उनके साथ रामायण युद्ध में उनकी सेना का सहयोग किया। वाली अपनी पराजय के बाद भी राम को आत्मसमर्पण करते हुए उन्हें अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था। वाली रामायण में एक अद्वितीय चरित्र हैं, जो अपनी वीरता, ज्ञान, धर्म, और सेवाभाव के लिए प्रसिद्ध हैं।